“क्षण भर जीवन मेरा परिचय।”
वे अपना परिचय कुछ इसी तरह से दिया करते थे – – “मिट्टी का तन मस्ती का मन क्षण भर जीवन मेरा परिचय।”
जी हाँ, मैं यह सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार डॉ हरिवंशराय बच्चन जी का जिक्र कर रही हूँ जिनकी पुण्यतिथि आगामी 18 जनवरी को आ रही है।
प्रथम रूबाई पढ़िये – –
“मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।………………..
से लेकर अंतिम रूबाई देखिये – –
बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५।
सम्पूर्ण मधुशाला का अध्ययन किया जाए तो इसमें सूफियाना पुट के दर्शन होते हैं। बच्चनजी ने इसे हास्य विनोद में हालावाद का नाम दिया करते थे।
27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले में पट्टी नामक गांव में एक कायस्थ परिवार में जन्मे हरिवंशराय अपनी कृति “मधुबाला” के लिए विख्यात हुए। कुल 135 रुबाइयों से युक्त यह खूबसूरत बच्चन जी की यह कृति सूफीवाद से अत्यन्त प्रभावित थी।
बच्चनजी ने अपनी आत्मकथा चार खण्डों में महाकाव्य के रूप में लिखी–
1.क्या भूलें क्या याद करूं
2.नीड़ का निर्माण फिर
3.बसेरे से दूर
4.दश द्वार से सोपान तक
मधुबाला, मधुशाला, मधुकलश सहित कई कृतियों के सृजित बच्चनजी को सर्वाधिक प्रसिद्धि मधुशाला से प्राप्त हुई जिसका अनुवाद अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में किया गया। मधुशाला अपने आप में हिन्दी साहित्य की एक अनूठी व अविस्मरणीय कृति मानी जाती है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©