क्षणिका
अपनों से अपनी बात …………
आज सुवह कचरे के ढेर पर देखा ,,,उस पर झुके हुए अधनंगे बच्चो को ,,,,,,,
बीन रहे थे अपने मतलब का कबाड़ ,,
ऐसा लग रहा था जुटे हों जानवर और मवेशी ,,,
अधनंगे ,,द्रष्टि छिपाए ,, झुके कंधे ,,
देखता रहा ,, इन राम राज्य के खोटे सिक्को को ………………..
टटोलते हुए भोजन का जरिया ,,,बीमार माँ के लिए …
दवाई ,,,,,शराबी पिता का जेब खर्च ,,
और जाने किस किस का ,,जुगाड़ करते इस कबाड़ से …
दूर से उनको देखता रहा ,,,,असहाय ,, लाचार सा ,,,,
व्यंग हंस पड़ा ,,आँखों में झलक आया क्रोध का सैलाब ..
सोचता रहा समाज की ……….बदतर हालत …,,,
हालत के लिए जिम्मेदार कौन ,,,…..
सोचता रहा ,,सोचता रहा ,,,बात करता रहा अपनी आत्मा से ,,वहां कोलाहल था ,,,मैं था मौन बस मौन …. देता रहा धन्यवाद ,,आज के समाजवाद को .. ,,,……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..,,,,,,,,,,,,,,,,,