क्षणिकायें
क्षणिकायें
मैं आज अपने वर्तमान को
संवारने में लगा हूँ
चूंकि यही वर्तमान
कल आने वाले भविष्य का वर्तमान होगा
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पाकीजगी जिन्दगी के
हर लम्हे में , हर आरजू में पैदा कर
कुछ ऐसा कर दुनिया
पाकीजगी का सरोवर हो जाए
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मानता हूँ कारवाँ रुकते नहीं किसी के लिए जमाने में
पर मैं वो हूँ जिसने कारवाँ को दो पल रुक
विश्राम कर आगे बढ़ने और
मंजिल की ओर मुखातिब करने की जुर्रत की है
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पालता हूँ खुशियों के पल जिगर के साए तले
कहीं कोई मुसाफिर आ जाए
तो दो घड़ी खुशियों की छाँव तले
विश्राम कर सके