क्षणिकायें
क्षणिकायें अक्सर लिखता हूं:लिखने की प्रेरणा मगर कवि बंधुओं और पाठकवृंद से मिलती है।आज की क्षणिका प्रस्तुत है
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“क्षणिका”
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मत ढूंढो
चांद को
अमावस
की रात है
क्योंकि चांद
मेरे पास है
रात
इसलिये उदास है
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राजेश’ललित’शर्मा
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मैं तो गया था
बेवजह ;उस तरफ़ !
तुम गुज़रे उधर से
तो सबब हो गया।
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राजेश’ललित’शर्मा
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अभी ठंडी सी
आह निकली!
हां,याद तो
आई थी उनकी
दबे पांव
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राजेश’ललित’शर्मा
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क़दम यूँ ही
उठ गये
उस राह पर
जहाँ चाह थी
हर चाप पर
अब भी इंतज़ार है
उसका नाम नहीं लूँगा ?
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राजेश’ललित’शर्मा
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