क्षणिकायें-पर्यावरण चिंतन
क्षणिकाएँ
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पर्यावरण दिवस चिंतन
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जंगल
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टूटी टहनियों से,
पेड़ बनता है कोई!
कटे पेड़ों से,
जंगल अटा पड़ा है।
पेड़ों से बनायें दरवाज़े ,
खुलेंगे को हवा आयेगी!
बंद होंगे तो चोरी नहीं,
हमने यूं ही जंगल चुरा;
जंगल बना डाला
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राजेश’ललित’
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पानी
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आज रविवार है !
चलो कार की,
करें सफ़ाई ,
बेटा पाईप,
नल में लगा!
फुर्र फ़व्वारा छूटा!
चमक गई कार;
पानी यूँ ही निर्रथक,
बहता रहा।
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राजेश’ललित’