क्लासिफ़ाइड
कुछ इस तरह से नौकरियों का मामला हाइड
निकलता है
जैसे अनपढ़ और ग्रेजुएट लिए क्लासिफाइड
निकलता है
अख़बार के पन्ने दिखाते अनगिनत सपने
बेरोजगारों को तो भरोसा हो भी जाता है
कुछ निकल पड़ते हैं नौकरी के पते पर
इस रास्ते में बहुत कुछ खो भी जाता है
लोगों को लूटने का धंधा बहुत वाइड
निकलता है
जैसे अनपढ़ और ग्रेजुएट लिए क्लासिफाइड
निकलता है
समझ से परे तनख्वाह की फेहरिस्त अख़बारों में
कुछ पोस्टर भी मिल जाते हैं हर गली – चौबारों में
क्या इस तरह से तनख्वाह का भी टाइड
निकलता है
जैसे अनपढ़ और ग्रेजुएट लिए क्लासिफाइड
निकलता है
बचत भी नौकरी के चक्कर में यूँही बर्बाद होती है
बेरोजगारी जस की तस फिर से वहीं आबाद होती है
लक आगे भी न बढ़ता है न ही साइड
निकलता है
जैसे अनपढ़ और ग्रेजुएट लिए क्लासिफाइड
निकलता है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी