क्रोध
सेठ राम दयाल अपनी दुकान पर बेठे थे दोपहर का समय था इसलिए कोई ग्राहक भी नहीं था।
सेठ जी ने दुकान के कोने में एक दीवान रखा हुआ था।जब ग्राहक नहीं होते तो सेठ जी उसी दीवान पर थोडा आराम कर लेते थे।
उस दिन भी सेठ जी ग्राहकों के अभाव में थोड़ा सुस्ताने लगे, इतने में ही किसी ने आकर सेठ जी को आवाज लगाई कुछ देने के लिए…
सेठजी हैरान ? इस समय कौन आया है ?
उठकर देखा तो एक संत महात्मा याचना कर रहे थे।
सेठ जी थे बड़े ही दयालु! तुरंत उठे और दान देने के लिए चावल की बोरी में से एक कटोरा भर कर चावल निकाला और संत महात्मा के पास आकर उनको चावल दे दिया l
संत महात्मा ने सेठ जी को बहुत आशीर्वाद और दुआएं दी l
सेठजी ने ??हाथ
जोड़कर बड़े ही विनम्र भाव से कहा,हे महात्मा! आपको मेरा प्रणाम?? ।”
“मैं आपसे अपने मन में उठी शंका का समाधान चाहता हूँ |”
महात्मा जी ने भी प्यार से कहा,”कहो वत्स! क्या शंका है?’
सेठ जी ने पूछा,”लोग आपस में लड़ते क्यों है?”
महात्मा जी ने बहुत ही शांत स्वभाव और मधुर वाणी में कहा….
“सेठ! मै तुम्हारे पास भिक्षा लेने के लिए आया हूँ तुम्हारे इस प्रकार के मूर्खता पूर्वक सवालो के जवाब देने नहीं आया हूँ |”
महात्मा जी का यह जवाब सुनकर सेठ जी मन में सोचने ?लगे, “यह कैसा घमंडी और असभ्य संत है ? ये तो बडे ही कृतघ्न है। एक तरफ मैंने इनको दान दिया और ये मुझे ही इस प्रकार की बात बोल रहे है इनकी इतनी हिम्मत।”
यह सोच कर सेठजी को बहुत ही गुस्सा आ गया और काफी देर तक उस संत को खरी खोटी सुनाते रहे।
सेठ जी अपने मन की पूरी भड़ास निकाल कर ही कुछ शांत हुए।
अब संत महात्मा जी बड़े ही शांत और स्थिर भाव से बोले,”जैसे ही मैंने कुछ बोला आपको गुस्सा आ गया और आप गुस्से से भर गए और लगे जोर जोर से बोलने और चिल्लाने।”
“वास्तव में केवल गुस्सा ही सभी झगडे का मूल होता है यदि हम अपने गुस्से पर काबू रख सके या सीख जाये तो दुनिया में कभी झगड़े होंगे ही नहीं!!!”
आईये हम और आप इस कहानी से कुछ सीख लें और करें कोशिश अपने क्रोध पर नियन्त्रण करने की।