क्रोध
क्रोध–
क्रोध जानवर का हो या इंसान का सदा हानिकारक ही होता है।
जानवर कोई भी हो अगर विदक जाए तो घातक हो जाता है चाहे बड़ा जानवर हो या छोटा जानवर मनुष्य को उसकी वेदना संवेदना समझना चाहिए अन्यथा परिणाम बहुत पीड़ा दायक होते है ।
आज कल यह समाचार पत्रों में खबर आम है कि गोरखपुर संजय विनोद वन का हाथी गंगा राम अक्सर विदक जा रहे है और महावत तक को भी कुछ नही समझते महावत घायल और चिकित्सा हेतु भर्ती है।
बहुत दिन पहले कि एक घटना जो जानवरों कि संवेदना से ही सम्बंधित है को जीवंत करती है गंगाराम कि हरकत ।
बात मोहर्रम के मातमी जुलूस का है ठाकुर गिरधारी सिंह का हाथी भी जुलुस में शामिल था हाथी देखने से ही भयंकर एव ताकतवर था मोहर्रम का जुलूस अपने पूरे सुरूर पर था जुलूस में नौजवान प्रौढ़ बृद्ध सभी आयु वर्ग के लोग सम्मिलित थे सब कुछ बहुत व्यवस्थित चल रहा था पुलिस प्रशासन के लिए मोहर्रम के जुलूस के शांति पूर्ण समापन को लेकर एक अलग समस्या थी ।
इसी बीच जुलूस में चल रहे किसी नौजवान को शरारत सूझी और सिगरेट पीते हुए सिगरेट का आखिरी हिस्सा जलता हुआ जुलूस में आगे आगे चल रहे ठाकुर गिरधारी सिंह के हाथी के कान में डाल दिया ।
अब क्या था भयानक हाथी एकाएक विदक गया और उधम मचाने लगा शांतिपूर्ण जुलूस में भगदड़ मच गई और सभी अपनी अपनी जान बचाते इधर उधर भागने लगे हाथी महावत के कब्जे से बाहर आतंक मचा रहा था।
पूरा शहर एक तरह से हाथी के आतंक का पर्याय बन गया था विदके हाथी जिसे जैसे पाता उस पर टूट पड़ता सड़क के किनारे फुटपाथ की दुकानों को तहस नहस करता हुआ जिधर उसकी मर्जी होती जाता ।
प्रशासन के समझ मे नही आ रहा था कि क्या करे? हाथी को हिन्दू अपने देवता गणेश कि तरह पूजते है लेकिन प्रशासन ऐसी स्थिति में चुप भी नही रह सकता था ।
जब प्रशासन के सारे प्रयास व्यर्थ साबित हुए तो जिलाधिकारी ने शहर के मशहूर व्यक्ति जो शिकारी भी थे को हाथी को नियंत्रित करने का जिम्मा सौंपा शिकारी महोदय ने अपनी रायफल एव जीप से हाथी का पीछा किया पीछा करते करते उन्होंने हाथी पर तीन चार राउंड फायर किया जो हाथी के सिर पर जा लगी।
हाथी पहले से ही विदका था और भी क्रोधित होकर वह आतंक मचाने लगा आखिर घायल हाथी कुछ दूर जाकर एक गड्ढे में गिर गया।
हाथी के गिरने के बाद उसके आतंक से तो निजात मिल गयी किंतु प्रशासन के समक्ष एक नई समस्या धार्मिक असंतुलन कि खड़ी हो गयी शहर के हर गली मोहल्ले के हिन्दू समाज के लोग गजराज के पूजन वंन्दन के लिए उमड़ पड़े ।
प्रशासन को इस बात का एहसास हो गया कि मामले को जल्द ही नही संभाला गया तो नई मुसीबत पूरे शहर में खड़ी हो जाएगी क्योकि हाथी पर फायर करने वाले शिकारी मुस्लिम थे ।
प्रशासन ने हाथी के इलाज कि सर्वोत्तम व्यवस्था की हेलीकॉप्टर से चिकित्सको का दल बुलाया गया चिकित्सा हफ़्तों चलती रही जुलाई बरसात का महीना बीच बीच मे बरसात होती रहती फिर भी आस्थावानों का गजराज के दर्शन हेतु तांता लगा रहता।
घायल गजराज की उच्च चिकित्सा व्यवस्था देखकर हिन्दू समाज का क्रोध कुछ शांत हुआ प्रशासन भी गजराज कि चिकित्सा में प्रशासन ने इतना समय ले लिया जिससे कि हिन्दू समाज का क्रोध समाप्त हो जाय।
आखिर गजराज ने दम तोड़ दिया और मोहर्रम कमेटी ने ठाकुर गिरधारी सिंह को गजराज की कीमत अदा कि।
आज गजराज के परिनिर्वाण स्थल पर पर्यटन स्थल गजराज की शहादत का जीवंत साक्षी हैं जो चीख चीख कर कहता है कि इंसानों को जो समझदार प्राणि है किसी भी प्राणि कि संवेदना को समझना चाहिये।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उत्तर प्रदेश