क्रोध
चार नरक के द्वार हैं,काम,लोभ ,मद,क्रोध।
जीवन उसका है सफल,जिसको इसका बोध।।१
क्रोध दूसरों में करे, सिर्फ क्रोध संचार।
करे शांति को भंग जो, ऐसा एक विकार।। २
क्रोध कभी करता नहीं, अनुचित उचित विचार।
करे नष्ट बल,बुद्धि धन, धर्म, नीति, आचार।। ३
क्रोध असुर की संपदा, पीड़ा दायक द्वार।
अपना ही घर फूंक दे,यह ऐसी अंगार।। ४
गुस्सा करता है सदा, अपना ही नुकसान।
जो वश में करता इसे, बढ़ता जग में मान।। ५
मुख धारी बैरी बहुत, देता खुद को श्राप।
इस पर अंकुश डाल दो, क्रोध पाप का बाप।। ६
क्रोध पतन का रास्ता, महा तीक्ष्ण तलवार।
खुद की गर्दन पर करें, खुद ही मनुज प्रहार।। ७
तीर क्रोध का जब चले, खुद का करे विनाश।
मन में आने दो नहीं, काटो इसका पाश।। ८
करे मनुज को खोखला,क्रोध एक अभिशाप।
शक्ति हीन जीवन पतन, करते खुद को आप।। ९
लिया क्रोध में फैसला, मूर्खता का प्रमाण।
वह पछताता बाद में, हर लेता है प्राण।। १०
चले क्रोध का वाण जब, हर लेता है ज्ञान।
लाती विपदा साथ में, लाती है तूफान।। ११
लेकर लंबी साँस तब, पानी पी लो आप।
फिर दस तक मन में गिनो, घटे क्रोध का ताप।। १ २
चुप रहना ही क्रोध में, एक सटीक उपाय।
तभी क्रोध का भूत यह, काबू में आ जाय।। १ ३
खुद पर काबू ही नहीं, बना क्रोध का दास ।
मानव से दानव बना, रिश्ते हुए उदास।। १४
क्रोध जलाता नित दिवस, बढता रहे तनाव।
मानव तन-मन पर पड़े, इसका बुरा प्रभाव।। १५
अंतस को घायल किया, कड़क क्रोध का बोल।
सब अच्छाई ले गया, जहर दिया है घोल।। १६
क्रोध भरा आँखे दिखे, लाल रक्त का कूप।
करे लाख श्रृंगार वह, फिर भी लगे कुरूप।। १ ७
योग, ध्यान आसन करें, संयम रहे विवेक।
नित दिन प्राणायाम से, लगे क्रोध पर टेक।। १८
आता है आवेग से, तीव्र क्रोध का आग।
स्वयं मनुज जब पालता, मन में विषधर नाग।। १९
सावधान होकर रहे, खड़ा क्रोध का काल।
सर्वनाश कर छोड़ता, नहीं हृदय में पाल।। २०
-लक्ष्मी सिंह