क्रोध घृणा क्या है और इसे कैसे रूपांतरण करें। ~ रविकेश झा
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप लोग आशा करते हैं कि आप सभी अच्छे और स्वस्थ होंगे। और जागरूक हो रहे होंगे ध्यान जागरूकता के साथ जीवन जी रहे होंगे। जीवन कब हमें दुख देने लगे हमें पता नहीं चलता इसीलिए हम प्रतिदिन तैयारी कार्य है कि जीवन में दुख न हो सब अच्छा चलते रहे। लेकिन फिर भी हम दुख से ऊपर नहीं उठ पाते क्योंकि हम प्राप्त करना चाहते हैं और उसके लिए हम दिन रात मेहनत करते हैं शरीर को पूरा लगा देते हैं फिर भी परिणाम हमारे अनुसार नहीं मिला फिर हमें क्रोध आता है दुख होता है। लेकिन हम स्वयं को और परेशान कर लेते हैं। क्योंकि हमें वही मिलेगा जितना हम प्रयास करेंगे नहीं अधिक न कम, लेकिन फिर भी हम क्रोध से भर जाते हैं हम अग्नि को स्वयं पर हावी होने देते हैं, फिर जीवन और जटिल होते जाता है। क्रोध का मतलब की हमें वह नहीं मिल रहा है जो हम चाहते थे, हमें क्रोध आएगा ही हम वर्ष भर मेहनत किए और परिणाम कुछ और तो क्रोध स्वयं पर आएगा त्याग का मन भी हो सकता है , या हृदय में जीने वाले दुख से भर सकते हैं। और वही दूसरी जगह हम घृणा से भर जाते हैं हम किसी से प्रेम तो किसी से घृणा, हमें वह नहीं चाहिए क्योंकि वह हमारे अनुसार नहीं इसका मतलब ये नहीं कि वह बेकार हो गया हमें नहीं चाहिए कोई और उपयोग या अपने पास रख सकता है। घृणा प्रेम की अनुपस्थिति है, क्रोध करुणा का इसलिए हमें स्वयं को समझना होगा एक बात और हम क्रोध भी पूरा नहीं करते घृणा भी पूरा नहीं करते अगर करते तो हम प्रेम की तरफ़ बढ़ सकते थे करुणा के तरफ़ बढ़ सकते हैं, जिसे हम पूर्ण कहते हैं पूर्णता कहते हैं होश से कहते हैं क्रोध को हम पूर्ण नहीं होने देते चिड़िया के तरह कोई रास्ते उड़ जाते हैं कोई सुख का रास्ता खोज लेता है रुकता कहां है फिर नया कमान खोज लेता है ठहरने का नाम है होश रुकना देखना , लेकिन हम कर्म से ऐसे फंसे हैं कि हमें होश का भी पाता नहीं चलता। तो चलिए बात करते हैं घृणा क्रोध को कैसे रूपांतरण करें।
क्रोध घृणा को समझना।
क्रोध और घृणा ऐसी भावनाएं हैं जो किसी न किसी समय सभी को प्रभावित करती हैं। ये भावनाएं शक्तिशाली और भारी हो सकता है जिससे हम स्वयं और सामने वाले को को कष्ट पहुंचा सकते हैं, रुक गए तो स्वयं को, नहीं तो समाने वाले को आप लड़ोगे उसके पास भी शक्ति है शरीर दो शक्ति एक किसको आप हराओगे कौन जीतेगा उस में भी वही ऊर्जा है और उसमें भी लेकिन फिर भी हम ताकत लगाते हैं कैसे भी जितना है कैसे भी, नहीं तो क्रोध यहां समझने की आवश्कता है। अगर इन्हें ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाए तो ये अक्सर नकारात्मक परिणाम देता है। आध्यात्मिक अभ्यासों में, इन भावनाओं के समझना बहुत आवश्यक है। जब लोग ऐसी परिस्थितियों का समाना करते हैं जिन्हे वे नियंत्रित नहीं कर सकते, तो उन्हें अक्सर क्रोध आता है, लेकिन यहां याद रहे नियंत्रण करने के बाद भी क्रोध आ सकता है कितना आप नियंत्रण करोगे जब तक नियंत्रण करने वाले का पता नहीं लग सकता तब तक आप अंदर से आनंदित नहीं हो सकते, उदाहरण के लिए आप को व्यवसाय में हानि हो गया आप बहुत बड़े बिजनेस मैन है और स्वयं को नियंत्रण करने माहिर हैं फिर भी आपको क्रोध आएगा दुख होगा, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से कोई दुख नहीं कोई क्रोध नहीं कोई घृणा नहीं, क्योंकि वह जानते हैं पूरा मिट्टी हैं मिला न मिला क्या परेशान होना, लेकिन नियंत्रण करने वाले गंभीरता से लेंगे स्वयं को दुख देंगे क्रोध से भर जाएंगे। आध्यात्मिक व्यक्ति इसीलिए बिजनेस नहीं करते हैं क्योंकि वह लाभ हानि से परे सोचते हैं उनको वह मिल जाता है जिसका न कभी अंत है, जो कभी न मिट सकता, आनंद स्वरूप जिसका कभी मृत्यु नहीं, यदि व्यवसाय करते भी हैं तो हानि में भी आनंदित होते हैं और लाभ में भी, एक बात याद रखें लाभ हानि से परे हो जाते हैं जिसको सुख मिला उसमें भी आनंद स्वयं के लिए उन्हें कोई आशा नहीं रखता लोभ नहीं बचता जो परमात्मा दे दे उसमें खुश।
यह कथित खतरों के प्रति एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। हालांकि, जब क्रोध को संबोधित नहीं किया जाता है, तो यह घृणा में बदल सकता है। घृणा अधिक तीव्र और लंबे समय तक चलने वाली होती है।यह व्यक्ति के विचारों और कार्यों को खा जाती है।
आध्यामिक दृष्टिकोण।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, क्रोध और घृणा बढ़ाएं हैं। वे आंतरिक शांति और ज्ञानोदय के मार्ग को अवरूद्ध करते हैं। आध्यात्मिक शिक्षाएं इन भावनाओं पर काबू पाने की आवश्कता पर ज़ोर देता है। इसमें आत्म-जागरूकता और दिमागीपन शामिल हैं। व्यक्ति क्रोध को पूर्ण नियंत्रण करने के लिए ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं। ध्यान मन शांति करने और तनाव को कम करने में मदद करता है। यह लोगों को वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह अभ्यास आपको बिना किसी निर्णय के अपनी भावनाओ का निरीक्षण करने की पूर्ण अनुमति देता है। सांसारिक दृष्टि से हम जी रहे हैं अभी हमें आंतरिक का अभी कुछ पता नहीं, आध्यात्मिक का अर्थ है अंदर से जीना सबको स्वीकार करना है। भागना नहीं बल्कि जागना शामिल हैं। हमें स्वयं के गतिविधि पर ध्यान देना होगा। आध्यात्मिक दृष्टि से जीने वाले व्यक्ति क्रोध और घृणा से परे सोचते हैं और ध्यानवाण होने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
क्रोध पर काबू पाने के लिए कदम।
क्रोध पर काबू आपको स्वयं करना होगा चिंगारी कहां से उठता है ये जानना होगा, कैसे शीतल पानी भाप बन जाता है। इसके लिए हमें पहले अपने कामनाओं को समझना होगा, हम कामना में ऐसे उलझे हैं कि और कुछ दिखाई नहीं देता। कामना पूर्ण नहीं होगा क्रोध तो आयेगा स्वाभाविक है। लेकिन कैसे मुक्ति मिले इसके लिए हमें धैर्य के साथ ध्यान में उतरना होगा। धैर्य का बहुत आवश्कता है। क्रोध का कारण बनने वाले ट्रिगर्स की पहचान करें। गहरी सांस लेने की तकनीक का अभ्यास करें। नियमित ध्यान के वीडियो देखें और स्वयं ध्यान में उतरे और प्रतिदिन ध्यान करें। क्रोध के पहले और परिणाम पर चिंतन करें। आप स्वयं करुणा के पथ पर चलते रहेंगे। लेकिन पूर्ण ध्यान में उतरने के बाद ही क्रोध करुणा में रूपांतरण होगा नहीं तो हम बस ऊपर से मान लेंगे की करुणा करना है क्रोध नहीं, लेकिन फिर आपको ऐसे हालात दिखेंगे तब आप क्रोध या त्याग से नहीं बच पाएंगे। इसीलिए पूर्ण ध्यान और जागरूकता के बाद ही परिणाम सुखद होगा।
घृणा का रूपांतरण।
हम प्रेम में नहीं उतर पाते हृदय हमारा काम नहीं कर रहा हम बुद्धि मे जीते हैं, यहां कमल का पुष्प और कीचड़ दोनों का अपना स्थान है। दृष्टि अपना काम करता है हम दृष्टि और मन के अनुसार दृष्टि बदलते रहते हैं। घृणा प्रेम की अनुपस्थिति है जैसे सिक्के के दो पहलू हैं वैसे ही घृणा और प्रेम काम करता है। लेकिन सिक्का के दोनों पहलू के बीच से हमको देखना होगा, दोनों के बीच से हम घृणा और प्रेम को साफ साफ देख सकते हैं। घृणा को बदलना एक अधिक जटिल प्रक्रिया है। इसमें व्यक्ति की मानसिकता और दृष्टिकोण को बदलना शामिल होता है। लोगों को सहानभूति और प्रेम को और विकसित करने की आवश्कता है। अंदर के संभावना को और विकसित करना होगा हमें देखना होगा हम मन के कौनसा भाग में है कहां खोए हुए है। ये गुण घृणा के प्रभावों का प्रतिकार कर सकते हैं। क्षमा करना भी आवश्यक है। क्षमा का अर्थ है किए गए नुकसान को भूल जाना या बहाना बनाना। लेकिन ऐसा हो तो नहीं पता है हम करुणा दिखा तो देते हैं ताकि समाज में नाम हो जाए या और कुछ कामना पूर्ण हो जाए, या मन में गाली क्रोध रह ही जाता है। इसलिए मैं कहता हूं ध्यान सबसे उत्तम कुंजी है स्वयं के सभी भागों को जानने के लिए। इसके बजाय इसमें आक्रोश को दूर करेगा क्रोध पूरा करुणा में रूपांतरण हो सकता है। यह प्रक्रिया भावनात्मक उपचार और शांति की ओर ले जा सकता हैं। हमें वस्तु और व्यक्ति के प्रति पूर्ण होश की आवश्कता है। देखते रहना होगा। जो भी दिखाई देता है ज़रूरी नहीं की वह सत्य है क्योंकि दो आंख से देखा जाए और तीसरा आंख आज्ञा चक्र से तब आप घृणा करने में सक्षम नहीं होंगे।
समुदाय की भूमिका।
क्रोध और घृणा को प्रबंधित करने में समुदाय का समर्थन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक सहायक समूह का हिस्सा बनना प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है। यह अनुभव साझा करने और दूसरों से सीखने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान करता है। लेकिन याद रहे जागरूकता हमें हमेशा आपने साथ रखना होगा होश के बिना यदि हम कोई कार्य या कोई फंक्शन में भाग लेते हैं फिर हम बस खुशी तक सीमित होंगे घृणा क्रोध बच जायेगा, इसीलिए हमें जागरूकता से साथ जीवन जीना होगा फिर हम न घृणा में फसेंगे न क्रोध में हम पूर्ण आनंद के तरफ़ बढ़ेंगे। व्यक्ति ध्यान समूहों या आध्यात्मिक समुदायों में शामिल हो सकते है। यह समूह अक्सर मार्गदर्शन और संसाधन प्रदान कर सकता है लेकिन ध्यान के साथ। वे लोगों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा के प्रति प्रतिबद्ध रहने में मदद कर सकता है। हम जहां भी रहे होश में रह सकते हैं ध्यान के साथ कोई घटना घटने दे सकते हैं।
निष्कर्ष।
निष्कर्ष के तौर पर, क्रोध और घृणा चुनौतीपूर्ण भावनाएं हैं। हालांकि, सही दृष्टिकोण से, उन्हें प्रबंधित किया जा सकता है। आध्यात्मिक अभ्यास इस उद्देश्य के लिए मूल्यवान साधन प्रदान करता है। इन अभ्यासों को अपनाकर व्यक्ति आंतरिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। हमें बस याद रहे ध्यान और जागरूकता हमें अपने पास रखना होगा, कोई भी कार्य करते वक्त हमें होश रखना होगा, तभी हम पूर्ण संतुष्ट और पूर्ण आनंद को उपलब्ध हो सकते है। हमें बस अपने पास ध्यान और जागरूकता का कुंजी रखना होगा। हमें धैर्य के साथ अभ्यास करना होगा। परिणाम की चिंता किए बिना हमें स्वयं के स्वभाव को जानना होगा, शुरू में परिणाम बस नहीं देखना है। स्वयं के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता हमें करना होगा। तभी हम पूर्ण संतुष्ट होंगे। अभी हमें परिणाम का चिंता रहता है, हम बाहर जब जीते हैं तो परिणाम के कारण कुछ मिलेगा ही नहीं फिर हम कामना क्यों करे कोई कार्य को पूर्ण क्यों करें, लेकिन यहां एक बात ध्यान देना होगा परिणाम चाहिए किसको पहले ये खोज करना होगा, शरीर को या मन को बुद्धि का या आत्मा को, ये सब बात को जानना होगा देखना होगा मन के भागों को समझना होगा। तभी हम पूर्ण जागरूक और परमानंद को उपलब्ध होंगे।
धन्यवाद।🙏❤️
रविकेश झा।