क्रोध की ज्वाला
क्रोध से क्रोध को लगी हवा।
क्रोध की ज्वाला भभक उठा।
क्रोध से क्रोध पर त्योरियाँ चढ़ी।
उचित- अनुचित सब दूर खड़ी।
यकायक तन झंकृत हुआ।
समूचा बदन क्रोध से काँप उठा।
आत्म बल का ह्रास हुआ।
सद्बुद्धि फिर ग्रास हुआ।
क्रोध के दैत्य पर न वश रहा।
ये नाग बदन को कस रहा।
श्रासोच्छवास का तीव्र छटा।
हृदय विक्षुब्ध हो कर फटा।
प्रेम सद्भावना को मिटा।
पतन काल का घिरा घटा।
स्वभाव का राक्षस प्रकट हुआ।
सर्वनाश फिर कर गया।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली