क्रुरवर
काश! मैं भी इंसान होता तो ये जानवर,पशु-पक्षी,जलचर जैसे उपनाम मुझे नहीं मिलते।मैं भी मानव जाति के कोई सुन्दर नाम से सुशोभित हो रहा होता।मेरी भी जिन्दगी आम इंसानों जैसी ही रहती।मेरी दिनचर्चा और क्रियाकलाप भी मानव सरीखे ही रहते।
मैं भी पढ़ता -लिखता और दक्षता हासिल करता।
मैं भी लडता अपने हक के लिए,अपने जीवन के लिए,अपने जीवन को सुदृढ़ बनाने के लिए संघर्ष करता।पर,अफसोस अभी तक ऐसी कोई पाठशाला बनी नहीं।जंहा पर मैं क्रमबद्ध तरीके से शिक्षा हासिल करूँ और अपने जीवन स्तर को ऊँचा ऊठा सकूँ।
मुझमे भी इंसानों जैसी बुद्धिमता आ चुकी होती और मैं भी मानव सभ्यता को चुनौती दे सकता था। मुझे भी अगर शिक्षन पद्धति नशीब होती तो आज मैं भी यूँ अनपढ़ न होता।
जीने की ललक मुझमे भी है ,जीने की चाह मैं भी रखता हूँ।मुझे भी अपने प्राण प्रिय लगते हैंं।इनकी तरह ही मेरी भी दिनचर्चा समान होती है।खाता हूँ-पीता हूँ,उठता हूँ-बैठता हूँ, सोता हूँ-जागता हूँ।हर क्रिया कलाप मानव सरीखा ही करता हूँ।सुख -दुःख,हर्ष-विषाध जैसे भावनाओं की अनुभूति मैं भी करता हूँ।यहाँ तक की मेरी रगों में जिस रक्त का संचरन होता है उस रक्त का रंग भी लाल ही है।जैसा आम इंसानों का हुआ करता है।
फिर भी मैं मार दिया जा ता हूँ इंसानों द्वारा हि।आखिर क्युँ?
यही सोचते-सोचते मेरे प्राण पखेरू उड जाते हैं।
बैकुणठधाम के रास्ते पर जाते हुए एकाएक नाममात्र के इंसानों पर नजर पडती है तो धरती का मंज़र देख आवाक् रह जाता हूँ।एक भयावह तस्वीर नजर आती है।
इंसानों को यह देखकर मन आश्चर्य से भर उठता है कि कैसे मानव सभ्यता के लोग मेरे मृत देह को नोच रहे हैं और मेरा खाल उतारा जा रहा है।मेरे मृत देह का कटिबद्ध तरीके से कुटिया बनाया जा रहा है। तासला में भुन-भुन कर ,हल्दी-मशाला डालके मेरे मृत देह का बडे ही चाव से आहार बनाया जा रहा है।
मेरा भक्षन करके उत्सव बनाया जा रहा है।इस मंजर को देखकर आत्मा तडप उठती है और दिल दहल जाता है।
क्रुरता का इस तरह नंगा नाच देखकर मन बडा ही व्यथीत हो उठता है।
मन सोच में पड जाता है कि कोई भी जीव खास करके इंसान इतना भी क्रुर कैसे हो सकता है?एक कमजोर और नीरीह जीव का क्रुरता से वध करके इंसान कैसे आनन्दित हो सकता है।
इंसानी रूपी दैत्यों के इस कुकृत्य को देखकर मुरे मुख से अट्टाहास हसीं फुट पडती है और दया भी आती है इंसानों पर।
इतनी दुष्टता और क्रुरता को अंजाम देने के पश्चात भी इंसान खुद को इंसान कैसे कह सकता है।इन लोगों को तो और भी निम्न जाति में शुमार होना चाहिये।क्योंकि मेरा नाम इन तथाकथित इंसानों ने जानवर,पशु-पक्षी व जलचर रखा है।असल में इंसानों का नाम जानवर होना चाहिए।मेरे ख्याल से इंसान तो फिर भी ठीक है।इनकी क्रुरता, बर्बरता, निर्दयता,दुष्टता और निष्ठुरता को देखते हुए इन इंसानों का नाम क्रुरवर होना ही उचित होगा।कयूँकि दुनिया में इंसान से क्रुरतम प्राणी और नहीं है।
आज मुझे एहसास हो रहा है जानवर ,पशु-पक्षी होने के बावयुद भी मुझे खुदपर गर्व है कि मेरा नाम इंसान नहीं पडा।वरना मैं भी आज इन क्रुरवरों की श्रेणी में आ जाता।
अब मै निश्चिंत भाव से बैकुणठधाम को प्रस्थान कर सकता हूँ ।अब मै क्रुरवरों की दुनिया को अलविदा कहके हर्षोन्माद में हूँ।इस मनोविनोद के साथ मैं अब शान्तचित्त भाव से बैकुणठधाम में निवास कर सकता हूँ।
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व्यंग्यकार:- Nagendra Nath Mahto.