क्रिकेट
बाल कहानी- क्रिकेट
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“राज! तू कहाँ जा रहा है, क्या तुझे स्कूल नहीं जाना?” करन अपने मित्र से पूछता है।
“कल से जाऊँगा।” राज ने उत्तर दिया।
“तुम पिछ्ले एक महीने से रोज़ यही कहते हो कि कल से जाऊँगा। आज तुम्हें मेरे साथ स्कूल चलना चाहिए मित्र!”
“करन! आज नहीं जाना है मुझे स्कूल। मैं आज क्रिकेट खेलने पास के मैदान में जा रहा हूँ। मेरी बात मानो, आज तुम भी न जाओ। मैनें अपना बैग एक पेड़ की पत्तियों में छिपा दिया है। लाओ, तुम्हारा बैग भी छुपा दूँ।
तुम डरो नहीं.. कोई नहीं जान पायेगा। स्कूल की छुट्टी के समय हम दोनों लोग वापस आ जायेंगे।”
“नहीं राज! मैं नहीं जाऊँगा। मैं स्कूल जा रहा हूँ।”
“ठीक है। तुम जाओ, पर सोचकर देखो, हम दोनों लोग जब क्रिकेट खेलेंगे तो कितना अच्छा लगेगा।
मैं तो पिताजी से रोज कहता हूँ कि मुझे बैट-बॉल लाकर दो, पर वे नहीं लाते। आज इतना अच्छा मौक़ा मिल रहा है तो कह रहे हो कि स्कूल चलो। मैं स्कूल नहीं जाऊँगा मै चला क्रिकेट खेलने।”
करन मुस्कुराते हुए कहता है कि-, “मित्र राज! क्रिकेट तो तुम प्रतिदिन स्कूल आकर भी खेल के पीरियड में खेल सकते हो और साथ-साथ पढ़ाई भी कर सकते हो। हमें तो स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता है।”
“करन! क्या तुम सच कह रहे हो? स्कूल में क्रिकेट!”
“हाँ, मित्र! मैं सच कह रहा हूँ। तुम स्कूल चलकर तो देखो।”
“ठीक है चलो।” राज स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया।
स्कूल पहुँचकर राज को पढ़ाई के साथ-साथ स्वादिष्ट भोजन, मस्ती की पाठशाला, रोचक एवं मनोरंजक शैक्षिक गतिविधियाँ, क्रिकेट के साथ-साथ खेल सामग्री का आनन्द मिलता है, जिससे राज बहुत प्रभावित होता है और वह निश्चय करता है कि वह प्रतिदिन विद्यालय आयेगा।
शिक्षा-
हमें इधर-उधर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। स्कूल हमें सब कुछ देता है।
शमा परवीन
बहराइच उत्तर प्रदेश