क्रांतिवीर हेडगेवार*
लघु नाटिका
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क्रांंतिवीर हेडगेवार
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पात्र परिचय :-
डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार,
अंग्रेज न्यायाधीश श्री स्मेली ,
डा० हेडगेवार के वकील श्री बोबड़े,
पुलिस इन्स्पेक्टर श्री गंगाधर राव आबा जी ,
कुछ अन्य वकील,
दर्शक,
पुलिसकर्मी
काल: 1921 ईसवी
स्थान : न्यायालय, नागपुर।
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★ दृश्य 1
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[ न्यायाधीश के आसन पर श्री स्मैली बैठे हुए हैं। वह काफी परेशान दीख रहे हैं। माथे पर त्यौरियाँ हैं। वह अपने दाहिने हाथ की दो उंगलियाँ भौहों के मध्य रखकर चिंता में डूब जाते हैं। अदालत में काफी शोर हो रहा है। स्मैली हथौड़ा खटखटाते हैं। ]
स्मैली: आर्डर-आर्डर ! केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राजद्रोह का अपराध किया है। उसका भाषण हिन्दुस्तान के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ भड़काने का था।
बोबड़े: योर ऑनर ! यह अभी साबित नहीं हो सका है कि डॉक्टर हेडगेवार राजद्रोह के दोषी हैं। अपने देश की आजादी की इच्छा राजद्रोह नहीं कही जा सकती।
स्मेली : जो कानून और गवाह कहेंगे, अदालत तो उसी पर चलेगी (व्यंगात्मक शैली में हाथ और सिर हिलाते हुए आँखें मटकाता हुआ वह कहता है।)
बोबडे: मैं पुलिस इन्स्पेक्टर आबाजी से कुछ जिरह करना चाहता हूँ। कृपया इजाजत दें ।
स्मैली: इजाजत है।
[पुलिस इन्स्पेक्टर आबा जी गवाह के कटघरे में आते हैं।]
बोबड़े : इंस्पैक्टर ! क्या आप समझते हैं कि डॉक्टर हेडगेवार अंग्रेजों के खिलाफ व्यक्तिगत द्वेष और हिंसा के लिए जनता को उकसा रहे थे ?
स्मैली (तेजी से): यह प्रश्न अभियोग से मेल नहीं खाता ।
बोबड़े : (इन्स्पैक्टर से ) खैर ! यह बताइये ,डॉक्टर हेडगेवार ने कोई ऐसी बात की जिससे लूटमार, आगजनी होने या संविधान और न्याय व्यवस्था समाप्त होने का खतरा हो ?
स्मैलो: यह प्रश्न असंबद्ध है।
बोबड़े: इन्स्पेक्टर ! हेडगेवार ने इसके अलावा तो अपने भाषणों में कुछ नहीं कहा कि उन्हें देश की आजादी चाहिए।
स्मैली : आप नही पूछ सकते ।
बोबड़े : ( गुस्से में ) इन्स्पेक्टर साहब ! डॉक्टर हेडगेवार सिर्फ इतना ही तो जनता से कह रहे थे कि हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान के लोगों का है ?
स्मैली: मैं आपको यह सवाल नहीं पूछने दे सकता। आप गवाह से बेकार के सवाल पूछे जा रहे हैं।
बोबड़े : (गुस्से में भरे हुए) न्यायाधीश मुझे गवाह से जिरह ही नहीं करने दे रहे हैं। यह अदालत ही नहीं, कानून का मजाक है । [पैर पटकते हुए बोबड़े कचहरी से बाहर चले जाते हैं ]
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★ दृश्य 2
★★★★★
[ डा० हेडगेवार और श्री बोबड़े एक निजी कक्ष में बैठे हुए बातें कर रहे हैं। बोबड़े वकीलों का-सा काला चोगा पहने हैं। हेडगेवार सफेद धोती-कुर्ता पहने हैं। उनकी बड़ी काली मूँछें हैं तथा बलिष्ठ शरीर है। आयु लगभग 32 वर्ष है।]
बोबड़े : जैसी भाषा में आपने यह मुकदमा दूसरी अदालत में भेजे जाने का आवेदन-पत्र दिया है, उससे लगता नहीं कि काम बनेगा ।
डॉक्टर हेडगेवार : अंग्रेजों से हम भारतीयों को न्याय की आशा करना व्यर्थ है।
बोबड़े : तो फिर आप अपना बचाव क्यों कर रहे हैं ?
डॉक्टर हेडगेवार : मैं बचाव नहीं कर रहा। स्वराज्य-संघर्ष में जेल जाना मेरे लिए गौरव की बात होगी ।
बोबड़े : फिर ?
डॉक्टर हेडगेवार : मैं तो अदालत को एक जनसभा में बदलना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि अदालत के मंच से हम अंग्रेज सरकार की अपवित्रता और असहयोग आंदोलन के उद्देश्य धूमधाम से गुंजित कर दें।
बोबड़े : बड़े धन्य है आप डाक्टर जी ! (हाथ जोड़ते हुए) राष्ट्र आपकी तेजस्वी प्रवृत्ति और त्यागमय जीवन-साधना को सदा स्मरण करेगा । आप सचमुच क्रांतिवीर हैं।
डॉक्टर हेडगेवार : यह प्रताप भारत की धरती का है। हम सब उसी भारत माता को प्रणाम करते हैं। (वह दोनों हाथ जोड़कर धरती को प्रणाम करते हैं।)
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★ दृश्य 3
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[ अदालत में स्मैली न्यायाधीश के आसन पर उपस्थित है। ]
स्मैली: मिस्टर हेडगेवार ! आपके मुकदमे को मैं ही सुनुँगा । दूसरी अदालत में मुकदमा भेजने की आपकी अर्जी कलेक्टर साहब के यहाँ से खारिज हो गयी है।
डॉक्टर हेडगेवार : मैं पहले से जानता था कि अंग्रेजों के राज में नियम और न्याय के अनुसार भारतीयों से बर्ताव कभी नहीं हो सकता।
स्मैली (दाँतों को पीसता हुआ) : अंग्रेजों के न्याय पर शक करते हो ?
डॉक्टर हेडगेवार (व्यंग्यात्मक लहजे में) : जो पराये देश में मनमाने ढंग से कब्जा करके बैठ जायें, उनके न्याय कर सकने पर भला कौन शक कर सकता है ?
[ हेडगेवार के कहने का तात्पर्य था कि अंग्रेज न्याय कर ही नहीं सकते। मगर स्मैली को समझ में स्पष्ट नहीं हो पाया, सो वह उलझा-सा रह गया और अपने बाल सहलाने लगा।]
स्मैली : (थोडी देर बाद) आपका वकील क्या अब कोई नहीं होगा ? मिस्टर बोबड़े भी नहीं दीख रहे हैं।
डॉक्टर हेडगेवार: सही बात कहने के लिए मैं अकेला ही काफी हूँ। भारत में अंग्रेजी राज से जूझने के लिए मेरी भुजाओं में अभी काफी दम है।
स्मैली: मुकदमे के बारे में आप कुछ कहना या पूछना चाहेंगे ?
डॉक्टर हेडगेवार : हाँ ! मैं इन्स्पेक्टर गंगाधर राव आबाजी से जिरह करना चाहूँगा।
[ इन्स्पेक्टर आबाजी गवाहों के कठघरे में लाये जाते हैं ]
डॉक्टर हेडगेवार : क्यों जी ! बिना टार्च के अंधेरे में आपने मेरे भाषण की रिपोर्ट कैसे लिख ली ?
आबाजी : मेरे पास टॉर्च थी !
डॉक्टर हेडगेवारः (कड़ककर, आँखों में आँखें डाल कर ) जरा फिर से तो कहो!
आबाजी (मुँह लटकाकर) ; आप एक मिनट में करीब बीस-पच्चीस शब्द बोलते थे, मैं वह आधे-अधूरे लिख लेता था।
डॉक्टर हेडगेवार: (स्मैली की ओर मुड़कर) मेरे भाषण में प्रति मिनट औसतन दो सौ शब्द रहते हैं। ऐसे नौसिखिए रिपोर्टर केवल कल्पना से ही मेरे भाषण को लिख सकते हैं।
आबा जी : (हड़बड़ाकर) जो मेरी समझ में नहीं आया, दूसरों से पूछ कर लिख लेता था।
डॉक्टर हेडगेवार : (स्मैली से) मेरे भाषण की रिपोर्ट लिख सकने में इन्स्पेक्टर साहब की परीक्षा की अनुमति दी जाए । ताकि जाना जा सके कि यह कितने शब्द लिख सकते हैं।
स्मैली: (घबराकर) नहीं-नहीं-नहीं। यह जरूरी नहीं है।
डॉक्टर हेडगेवार : मैंने तो अपने भाषणों में सारे हिन्दुस्तान को यही बताया कि जागो देशवासियों ! मातृभूमि को दासता के बंधनों से मुक्त कराओ ।
स्मैली : आप जानते हैं आप क्या कह रहे हैं ?
डॉक्टर हेडगेवार: मैंने यही कहा कि हिन्दुस्तान हम हिन्दुस्तानवासियों का है और स्वराज्य हमारा ध्येय है।
स्मैली : आप जो कुछ कह रहे हैं, उसके मुकदमे पर नतीजे बुरे होंगे ।
डॉक्टर हेडगेवार: जज साहब ! एक भारतीय के किए की जाँच के लिए एक विदेशी सरकार न्याय के आसन पर बैठे, इसे मैं अपना और अपने महान देश का अपमान समझता हूँ ।
स्मैली : मिस्टर हेडगेवार ! आप न्याय का मजाक उड़ा रहे हैं ।
डॉक्टर हेडगेवार; हिन्दुस्तान में कोई न्याय पर टिका शासन है, ऐसा मुझे नहीं लगता ।
स्मैली : (आँखें फाड़कर) क्या ?
डॉक्टर हेडगेवार : शासन वही होता है जो जनता का हो, जनता के द्वारा हो, जनता के लिए हो। बाकी सारे शासन धूर्त लोगों द्वारा दूसरे देशों को लूटने के लिए चलाए गए धोखेबाजों के नमूने हैं।
स्मैली : (हथौड़ा बजाकर गुस्से में चीखकर) मिस्टर हेडगेवार !
डॉक्टर हेडगेवार : हाँ जज साहब ! मैंने हिन्दुस्तान में यही अलख जगाई कि भारत, भारतवासियों का है और अगर यह कहना राजद्रोह है, तो हाँ ! मैंने राजद्रोह किया है । गर्व से राजद्रोह किया है।
स्मैली: बस – बस ! और कुछ न कहना !
डॉक्टर हेडगेवार : मैंने इतना और कहा था जज साहब ! कि अब अंग्रेजों को सम्मान सहित भारत छोड़कर घर वापस लौट जाना चाहिए।
(दर्शक-वर्ग की ओर से तालियों की आवाज आती है)
स्मैली : (चीखकर) आर्डर – आर्डर । अदालत में दिया जा रहा हेडगेवार का यह बचाव-भाषण तो इनके मूल-भाषण से भी ज्यादा राजद्रोहपूर्ण है।
डॉक्टर हेडगेवार : (केवल हँस देते हैं । )
स्मैली : (जल-भुनकर) हेडगेवार के भाषण राजद्रोहपूर्ण रहे है। इसलिए अदालत के हुक्म से इन्हें एक साल तक भाषण करने से मना किया जाता है और एक-एक हजार की दो जमानतें और एक हजार रुपये का मुचलका माँगा जा रहा है।
डॉक्टर हेडगेवार : आपके फैसले कुछ भी हों, मेरी आत्मा मुझे बता रही है कि मैं निर्दोष हूँ । विदेशी राजसत्ता हिन्दुस्तान को ज्यादा दिन गुलाम नहीं रख पाएगी। पूर्ण स्वतंत्रता का आन्दोलन शुरू हो गया है। हम स्वराज्य लेकर रहेंगे। आपकी माँगी जमानत देना मुझे स्वीकार नहीं है ।
स्मैली: अच्छा ! अगर ऐसा है, तो अदालत हेडगेवार को एक वर्ष का परिश्रम सहित कारावास का दण्ड देती है।
डॉक्टर हेडगेवार : ( हाथ उठाकर नारा लगाते हैं) वन्दे मातरम ! वन्दे मातरम !
(अदालत में उपस्थित दर्शक-वर्ग भी वंदे-मातरम कहना आरम्भ कर देता है। डॉक्टर हेडगेवार दो पुलिस वालों के साथ हँसते हुए कारावास जाने के लिए अदालत से बाहर आते हैं। अपार भीड़ उन्हें फूलमालाओं से लाद देती है ]
डॉक्टर हेडगेवार : (भीड़ को संबोधित करते हुए) पूर्ण स्वातंत्र्य हमारा परम ध्येय है। देशकार्य करते हुए जेल तो क्या कालेपानी जाने अथवा फाँसी के तख्त पर लटकने को भी हमें तैयार रहना चाहिए। हम अब गुलाम नहीं रहेंगे । भारत माता जंजीरों में जकड़ी नहीं रहेगी। आजादी मिलेगी, जरूर मिलेगी, हम उसे लेकर रहेंगे।
[नारे गूँज उठते हैं : भारत माता की जय !
डॉक्टर हेडगेवार की जय ! ]
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लेखक : रवि प्रकाश
पिता का नाम : श्री राम प्रकाश सर्राफ
पता :रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ, बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज)
रामपुर (उत्तर प्रदेश) 244901
मोबाइल 99976 15451
जन्मतिथि : 4 अक्टूबर 1960
शिक्षा : बी.एससी. (राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय ,रामपुर), एलएल.बी.(बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) संप्रति : स्वतंत्र लेखन
घोषणा : मैं रवि प्रकाश यह प्रमाणित करता हूँ कि उपरोक्त लघु नाटिका क्रांतिवीर हेडगेवार मेरे द्वारा लिखी गई मौलिक रचना है ।