Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Mar 2018 · 3 min read

क्रांतिकारी सुशीला दीदी

क्रान्तिकारी सुशीला दीदी*

सुशीला दीदी का जन्म पांच मार्च, 1905 को ग्राम दत्तोचूहड़ (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। जालंधर कन्या महाविद्यालय में पढ़ते हुए वे कुमारी लज्जावती और शन्नोदेवी के सम्पर्क में आयीं। इन दोनों ने सुशीला के मन में देशभक्ति की आग भर दी। शिक्षा पूर्ण कर वे कोलकाता में नौकरी करने लगीं; पर क्रांतिकार्य में उनका सक्रिय योगदान जीवन भर बना रहा।

काकोरी कांड के क्रांतिवीरों पर चल रहे मुकदमे के दौरान क्रांतिकारी दल के पास पैसे का बहुत अभाव हो गया था। ऐसे में सुशीला दीदी ने अपने विवाह के लिए रखा दस तोले सोना देकर मुकदमे की पैरवी को आगे बढ़ाया। इससे कई क्रांतिकारियों की प्राण-रक्षा हो सकी।

लाहौर में साइमन कमीशन विरोधी जुलूस का नेतृत्व कर रहे पंजाब केसरी वयोवृद्ध लाला लाजपतराय पर निर्मम लाठी प्रहार करने वाले पुलिस अधीक्षक सांडर्स के वध के बाद जब भगतसिंह छद्म वेश में लाहौर से दुर्गा भाभी के साथ कोलकाता पहुंचे, तो स्टेशन पर उन्हें लेने भगवतीचरण के साथ सुशीला दीदी भी पहुंची थीं।

दिल्ली में वायसराय की गाड़ी उड़ाने के काम में भी सुशीला दीदी ने भगवतीचरण को सहयोग दिया और फिर वापस कोलकाता आ गयीं। लाहौर षड्यन्त्र केस में राजनीतिक बन्दियों के अधिकारों के लिए 63 दिन की भूख हड़ताल कर मृत्यु का वरण करने वाले क्रांतिकारी यतीन्द्रनाथ दास का शव जब कोलकाता पहुंचा, तब भी सुशीला दीदी ने उनकी आरती उतारी थी।

क्रांतिवीरों पर अंग्रेज शासन तरह-तरह के सच्चे और झूठे मुकदमे लाद देता था। इसके लिए बहुत धन की आवश्यकता पड़ती थी। एक बार सुशीला दीदी ने अपनी महिला टोली के साथ कोलकाता में कई जगह ‘मेवाड़ पतन’ नाटक खेला और उसके बाद झोली फैलाकर धन एकत्र किया।

नौकरी करने वाली एक अविवाहित युवती के लिए इस प्रकार खुलेआम धन मांगना बड़े साहस का काम था। इसमें उनकी गिरफ्तारी का भी खतरा था; पर सुशीला दीदी क्रांतिकारियों के सहयोग के लिए कभी किसी काम से पीछे नहीं हटीं।

दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली (वर्तमान संसद) में बम फेंकने के बाद जब लाहौर की बहावलपुर कोठी में बन्द भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को छुड़ाने की बात चली, तो सुशीला दीदी ने इसकी योजना और व्यवस्था बनाने के लिए कोलकाता की अपनी नौकरी छोड़ दी।

इस अभियान के लिए चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में जब दल ने प्रस्थान किया, तो सुशीला दीदी ने अपनी उंगली चीरकर उसके रक्त से सबको तिलक किया। इस कार्य के लिए जिस फैक्ट्री में बम बनाये गये, वहां भी उन्होंने एक सिख युवक के वेश में काम किया। पंजाबीभाषी होने के कारण किसी को उन पर शक भी नहीं हुआ।

इन कामों में सक्रिय रहने के कारण सुशीला दीदी भी पुलिस की निगाहों में आ गयीं और उनके विरुद्ध दो वारंट जारी हो गये; पर चतुराई का परिचय देते हुए वे 1932 में दिल्ली में कांग्रेस के प्रतिबन्धित अधिवेशन में इन्दु के नाम से शामिल हुईं और छह महीने की जेल काटकर बाहर आ गयीं।

सभी प्रमुख क्रांतिकारियों के बलिदान या जेल में पहुंच जाने के कारण आगे चलकर यह क्रांति अभियान धीमा पड़ गया। सुशीला दीदी ने दिल्ली के अपने एक सहयोगी श्याममोहन से विवाह कर लिया और फिर उनका नाम सुशीला मोहन हो गया। इसके बाद वे पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान मोहल्ले में एक विद्यालय का संचालन करने लगीं। कुछ समय वे दिल्ली नगर निगम की सदस्य और दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं।

सुशीला दीदी ने दिखा दिया कि नारी हो या पुरुष, यदि उसके मन में देशभक्ति की ज्वाला विद्यमान हो, तो वह हर बाधा को पार कर सकता है।

Language: Hindi
Tag: लेख
473 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#आज_की_ग़ज़ल
#आज_की_ग़ज़ल
*Author प्रणय प्रभात*
2496.पूर्णिका
2496.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
अच्छा ख़ासा तआरुफ़ है, उनका मेरा,
अच्छा ख़ासा तआरुफ़ है, उनका मेरा,
Shreedhar
एक हैसियत
एक हैसियत
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
होली पर
होली पर
Dr.Pratibha Prakash
होरी के हुरियारे
होरी के हुरियारे
Bodhisatva kastooriya
प्रभु नृसिंह जी
प्रभु नृसिंह जी
Anil chobisa
राजनीति के नशा में, मद्यपान की दशा में,
राजनीति के नशा में, मद्यपान की दशा में,
जगदीश शर्मा सहज
चाय की चुस्की लेते ही कुछ देर तक ऊर्जा शक्ति दे जाती है फिर
चाय की चुस्की लेते ही कुछ देर तक ऊर्जा शक्ति दे जाती है फिर
Shashi kala vyas
धनतेरस के अवसर पर ,
धनतेरस के अवसर पर ,
Yogendra Chaturwedi
"गलतफहमी"
Dr. Kishan tandon kranti
नया सवेरा
नया सवेरा
AMRESH KUMAR VERMA
जलाना आग में ना ही मुझे मिट्टी में दफनाना
जलाना आग में ना ही मुझे मिट्टी में दफनाना
VINOD CHAUHAN
ख्वाहिश
ख्वाहिश
Annu Gurjar
जिद कहो या आदत क्या फर्क,
जिद कहो या आदत क्या फर्क,"रत्न"को
गुप्तरत्न
मात्र क्षणिक आनन्द को,
मात्र क्षणिक आनन्द को,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
कौन किसके बिन अधूरा है
कौन किसके बिन अधूरा है
Ram Krishan Rastogi
मर्दुम-बेज़ारी
मर्दुम-बेज़ारी
Shyam Sundar Subramanian
जीवन !
जीवन !
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
3-फ़क़त है सियासत हक़ीक़त नहीं है
3-फ़क़त है सियासत हक़ीक़त नहीं है
Ajay Kumar Vimal
ज़िन्दगी नाम है चलते रहने का।
ज़िन्दगी नाम है चलते रहने का।
Taj Mohammad
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
कवि दीपक बवेजा
" है वही सुरमा इस जग में ।
Shubham Pandey (S P)
*आते हैं भगवान 【भक्ति गीत】*
*आते हैं भगवान 【भक्ति गीत】*
Ravi Prakash
विषधर
विषधर
Rajesh
हिंदी पखवाडा
हिंदी पखवाडा
Shashi Dhar Kumar
[06/03, 13:44] Dr.Rambali Mishra: *होलिका दहन*
[06/03, 13:44] Dr.Rambali Mishra: *होलिका दहन*
Rambali Mishra
जिंदगी जीना है तो खुशी से जीयों और जीभर के जीयों क्योंकि एक
जिंदगी जीना है तो खुशी से जीयों और जीभर के जीयों क्योंकि एक
जय लगन कुमार हैप्पी
सत्य का संधान
सत्य का संधान
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
फूल बनकर खुशबू बेखेरो तो कोई बात बने
फूल बनकर खुशबू बेखेरो तो कोई बात बने
Er. Sanjay Shrivastava
Loading...