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13 Mar 2021 · 1 min read

क्यों हुई अजनबी ज़िन्दगी

212 + 212 + 212
रह गई क्या कमी ज़िन्दगी
क्यों हुई अजनबी ज़िन्दगी

खो गई है जमा-भाग में
रात दिन दौड़ती ज़िन्दगी

दूर से ही लिपट जाती थी
आशना थी कभी ज़िन्दगी

दो घड़ी चैन भी था कहाँ
हाय! ये बेबसी ज़िन्दगी

मौत का ख़्याल छोड़े मुझे
अरसे से ढो रही ज़िन्दगी

अर्थ की कामना शेष है
व्यर्थ ही काट दी ज़िन्दगी

3 Likes · 2 Comments · 370 Views
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