क्यों हिसाब देती हो
कैसी सहेली हो उसकी जो कांटो का गुलाब देती हो
जिंदगी एक पहेली है ये कैसा खिताब देती हो
माना तुम्हे समझना आसान नही है
जमाने भर को फिर तुम क्यों जख्मों का हिसाब देती हो
कैसी सहेली हो उसकी जो कांटो का गुलाब देती हो
जिंदगी एक पहेली है ये कैसा खिताब देती हो
माना तुम्हे समझना आसान नही है
जमाने भर को फिर तुम क्यों जख्मों का हिसाब देती हो