क्यों सोए हो तुम
अब तो खोल दो इन नाजुक पंखुड़ियों को
सपनों में डूबे इन कोमल नैनो को
सूरज की पहली किरण आज तुमसे मिलने को आई है
रात की काली घटा पर सुबह की रोशनी ने विजय पाई है
दृश्यति करो सूरज का दिव्य प्रकाश तुम्हारी तरफ ही आ रहा
प्रतित सव तेज तुममे फैलाना चाह रहा है
कल तक था जहां कोहरा घना
आज स्वच्छ निर्मल आकाश है
परिंदों के भी पर लगे जैसे संपूर्ण गगन पर छा गए
खुशियां उन्हें भी मिल गई काले बदरा जो छठ गए
कल के बिछड़े चातक भी आज मिलन को तड़प रहे
मिलन की घड़ी जो आ गई टिमटिमाते तारे बरस पड़े
पेड़ों की हरित पत्तियां भी हंस हंस के जैसे पागल हुई
मदमस्त होकर अपनी धुन में तीव्र वेग से हिलडुल रही
मयूर भी इस सुंदर छटा को देख अपने पंख फैला रहा
ऐसे अद्भुत क्षण को देखकर सर्व विश्व मुस्कुरा रहा
इन सबके बीच एक ही है जिसको अभी तक सुध ही नहीं
सारी पृथ्वी डोल गई उसको इसकी आहट ही नहीं
यह समय निकल गया तो कल को तुम पछताओगे
अब भी अगर सोना चाहो तो जीवन भर सोते ही रह जाओगे