क्यों लौट रहें नभ ?
मधुर – मधुर विकल के तन कौन कहें तन्हां इसे ?
बेला अंतिम कहाँ चली पतवार भी नहीं तम के शून्य भव ?
कल के पन्थ – पन्थ में कौन विकल क्यों लौट रहें नभ ?
इस असीम के स्वप्न में खोजूँ किसे जो बीती स्वप्न के कल ?
यह सर्ग को कौन सुनाएँ कोई शप्त तो कोई हो चलें शव ?
इस सीकड़ के कौन सतत शिखर – शिखर के चलें खग ?
मनु नहीं मनुजात के हो चले कब के म़नुजाद
विभूति – विरद के भुवन में रत यह विभात सबल सर के स्वर
शम शय्या कहाँ बिछी मुफ़लिस शर स्व कहाँ कलित ?
यहाँ साँस भी टिकी स्वेद सहर के शहर सम्बल सूर के कौन लय ?
यह सुधि भी कौन लीन्ही सदेह वरन् शकट क्यों विपन्न विपिन के ?
भोर – विभोर के अर्क है किस मत्त में मद के किस प्रतीर ?
इस लक्ष में कौन छिपा क्या कौन्तेय या विभीत के रङ्क ?
समर – समर में क्यों रण खोज रहा है कौन विकल के तन ?
अर्जुन नहीं अभिमन्यु नहीं यह दुर्योधन – दुशासन के दंश
शपथ – शपथ में क्या असित , हुआ क्यों द्युत क्रीड़ा के चल ?
यह किसका विकराल उर्ध्वङ्ग होती अचित इन्दु या सूर के ?
अज्ञ – विज्ञ , अभेद – अभेद्य , आसत्ति आसक्ति ईश के उत्पल नयन
इति के कूल या ईति अनुघत अशक्त असक्त के उन्मुख अतल
कली कुसुम में विहग के कूजन नहीं यह ईड़ा है किसकी ?