क्यों रोता है क्षण क्षण
**क्यों रोता है क्षण क्षण**
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पल पल हर पल क्षण क्षण
दिल रहे अशान्त क्षण क्षण
शालीनता का वास है नहीं
रहने लगा उदास क्षण क्षण
संतुष्ट स्तर नित्य है बढ़ रहा
दिखे असंतुष्ट सा क्षण क्षण
प्रेम भाषा को समझता नहीं
नफरतों में जीता क्षण क्षण
जीवन की डगर काँटो भरी
खाता है ठोकरें क्षण क्षण
प्रतिरोध ज्वाला में जल रहा
सहता है आघात क्षण क्षण
अपनों से जख्म बहुत खाए
गैरों ने संभाला है क्षण क्षण
सुखविंद्र जीवन अनमोल है
फिर क्यों रोता है क्षण क्षण
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)