क्यों रुप बदलती हो?
क्यों औरत हो कर भी तुम रुप बदलती हो,
क्यों औरत हो कर भी औरत का दर्द नहीं समझती हो।
मिल जाये दुनिया की हर खुशी मेरी बिटिया को दिल से चाहती हो,
फिर क्यों अपनी बहु के लिए उसकी राहों का कांटा बन जाती हो।
बिटिया मेरी है सुंदर, सुकुमार, फूलों की डाली,
बहुरानी मेरी है कामचोर, कलमुंही,करमजली।
ममता और दुलार अपनी बिटिया पर बरसा दूं,
तीखे शब्दों के ब्यंग्य बाण अपनी बहु पर चला दूं।
मिल जाये दुनिया के सारे सुख मेरी बिटिया रानी को,
दिन भर की थकी है फिर भी ये कामचोर है महारानी तो।
क्यों तुम रंग बदलती हो, क्यों ममता को अपनी तार-तार करती हो,
स्नेह का जो दरिया बहता है सीने में तुम्हारे,समय-समय पर उस दरिया में ज़हर भरा करती हो।
आख़िर क्यों? औरत हो कर भी तुम रुप बदलती हो,
क्यों नहीं, औरत हो कर भी औरत का दर्द नहीं समझती हो।