क्यों मौन
हम अपने कूचे में मुद्दतों से
क्यों मौन साधे पड़े हुए हैं
कौन ऐसी बेबसी है कि
लब पे ताले जड़े हुए हैं
जुल्म और मनमानियां
क्यों बन गई हैं मेखला
प्रतिकार औ प्रतिरोध का
कहाँ गुम हुआ है हौसला
क्यों नहीं करते हैं खुलकर
हम सब सच की पैरोकारी
चाऱों ओर पसरती जा रही
झूठों लंपटों की फौज भारी
सिर से ऊपर बह रहा अब
दूषित फैसलों का सैलाब
बिखर रहे हैं एक एक कर
जन मन में पैठे सब ख्वाब
गहन पसोपेश से घिरे हुए
हैं लोकतंत्र के तीनों स्तंभ
जनप्रतिनिधियों के बर्ताव
भी लोगों को कर रहे हैं दंग
बने कौन हनुमान जो दल
दे जुल्मियों का अभिमान
किसी मसीहा की प्रतीक्षा कर
रहा है सचमुच में हिंदुस्तान