क्यों … मेरा मन
क्यों …
मेरा मन,
भटकता रहता है ?
सूनसान गलियों में,
तो कभी तंहाईयों में,
जाने किसे ढूंढता है?
मेरा मन |
शहरों व कस्बों में,
गांव नगर में,
जन निर्जन में,
पहाड़, जंगल और बीहड़ में,
आखिर किसे खोजता है ?
मेरा मन |
कौन है जो,
मेरे अंतर्मन को
इतनी गहराइयों तक
छू गया?
मन को मेरे
चितवन से
चुरा ले गया |
कौन है वो,
जिसने
मेरे हृदय के
सुनेपन में
संगीत बिखेर दिये?
दिल के हर तार को,
कैसे उसने,
झंकृत कर दिये ?
आखिर,
कौन है वो?
जिसके लिए,
मेरा मन,
व्याकुल सा है |
इस संसार से,
विरक्त रहकर भी,
किसके लिए,
मेरा मन,
इतना आसक्त है |
किसकी,
मेरे जीवन में
तलाश है?
कौन है वो,
आखिर,
कौन है वो,
जिसके लिए,
मेरा मन
व्याकुल सा है ?
लेखक – मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव
पता- निकट शीतला माता मंदिर , शितला नगर , ग्राम तथा पोस्ट – बिजनौर , जिला – लखनऊ , उत्तर प्रदेश , भारत , पिन – 226002
सम्पर्क – 8787233718
E-mail – manoranjan1889@gmail.com