क्यों मेघ ये बरसते हैं।
बादल
देखो मेघ घन,जलधर,वारिद,
की आंखों से क्यों आंसू छलके?
क्या सागर ये हैं भर रहे,
अपने नयन सजल से?
कौन समझा है और समझेगा कि
गीले हैं नभ लोचन क्यों?
क्यों करता जलद, वारिद,
घन घन गान यह?
क्या जल संचय करता नीरद,
भरी धूप में अविराम यह।
क्या पयोधर ने कुछ किया सुनियोजित,
हेतु वसुधा कल्याण या बस यूं ही करता रहता
आसमान में मंगल विहान।
क्यों करता हम पर कृपा यह
अपने जल को बरसाकर।
क्या नहीं थक जाता यह
दूर दूर से जल लाकर।
भरी धूप में यह बादल
घड़ घड़ करके जाते हैं।
क्या ये खुश होते हैं या
गुस्सा हमें दिखाते हैं।
क्या सूरज की तेज धूप ने
कर दिया इनकों काला।
या फिर इनके पास नहीं है
चश्मा धूप वाला या रो रोकर
ये हो गए काले और खारे।
क्यों रोते ये मेघ श्यामल
सागर तू ही बता रे।
सागर तुझसे बांट रहे हैं
क्या ये अपने हृदय की पीड़ा।
क्या गगन से अनबन हो गई
जिसके घनिष्ठ ये साथी।
क्यों रोते ये गरज गरजकर
बात समझ नहीं आती।
क्या किसी विरहन की
विरह को देख हुए ये चिंतित।
कड़ी धूप में नित्य नियम से
करते क्यों जल सिंचित।
तू भी ध्यान से समझले नीलम
रहे मेघ तुझे समझा।
क्षमताओं का संचय करके
जनमंगल हेतु लगा।
नीलम शर्मा