कोई कह दे क्यों मजबूर हुए हम
कोई कह दे क्यों मजबूर हुए हम
एक दूजे से क्यों ऐसे दूर हुए हम
कोई कह दे क्यों……………..
जान बाकि है मगर जिंदगी नहीं
चाह जिंदगी की खो गई है कहीं
ना चाहकर भी क्यों दूर हुए हम
कोई कह दे क्यों………………
मिले भी न थे और हम यूँ बिछुड़े
खिले बिन गुल चमन जैसे उजड़े
पास आकर भी क्यों दूर हुए हम
कोई कह दे क्यों………………
हमारी खता है या तुम्हारी खता
कुसूर किसका नहीं हमको पता
‘विनोद’ क्यों ऐसे यूँ दूर हुए हम
कोई कह दे क्यों……………….
स्वरचित
( विनोद चौहान )