क्यों बेदहमीं है
आप तो आप हो जी, हम हमीं हैं
सब कुछ तो ठीक है मगर
तो फ़िर कहाँ कमी है !
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है सूर्य देवता ऊपर
आसमां भी ऊपर है
धरती, धरती ही ठहरी
कडापन है कहीं , कहीं नमी है
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हुस्न के दिलवाले है कहीं
तो कहीं देश के रखवाले हैं
हैं मतवाले भी बहुत मगर
फिर भी क्यों बेदहमी है !
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भूखा है आज भी किसान
सूखी पडी ज़मीं है
मौत तो सबको लिखी है मगर
यहाँ तो लाज़मी है !
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पैसा है, रुपैया है
इस दफें न कोई भैय्या है
मत फेंको इस तरह गंदगी
आगे देखो गंगा है मैय्या है !
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लूट है कहीं कहीं मार है
भ्रष्ट है भ्रष्टाचार है !
सोच तो लो इक बार बारे में ज़रा
जो भूखे हैं लाचार हैं !
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चरित्रवान है कोई , कोई बेहया है
ये वक्त की पुकार ही है
समझते सब, जानते भी सभी हैं
मगर न भाव है कहीं न कहीं दया है !
__________________________ बृज