क्यों बना हुआ है अचेत।
इस धरा पर कितने चल रहे हैं, अनुसंधान।आज व्यक्ति मंगल पर पहुंच कर छू रहा आसमान।।विज्ञानी ज्ञानी सब हो रहे माला माल।पर देश विकास के महल में हो गया है कंगाल।।न पृकृति खुश हैं न धरा खुशहाल।देखो कहीं तूफानी हवाएं और कहीं है भूचाल।। विकास की अंधी दौड़ में शामिल है हर इंसान।पर चेहरे पर चिंता और कर से है परेशान।। हवाएं दूषित हुईं और दूषित हुआं आसमान।चकृ विगड़ गया बर्षा का, चिन्तित हुआ किसान।। महामारी विपत्ति यो का मिल रहा संकेत। अभी भी क्यों इन्सान बना हुआ है अचेत।।