क्यों दे रहे दर्द
रास्ते तो सही चलता, पर भटक जाता हूँ।
अपनों के रचे इस कुचक्र को नहीं समझ पाता हूँ।
करते हैं वे बारंबार प्रहार,
पर मधुर मुस्कान उसके मेरे लिये,
नासमझ मैं कुछ नहीं समझ पा रहा हूँ।
प्रेम कर रहे स्वार्थ या निस्वार्थ से,
पल-पल बदल रहे उसके तेवर,
मैं कुछ नहीं समझ पा रहा हूँ।
क्यों दे रहे इतना दर्द,
क्यों नहीं निभा रहे अपना फर्ज,
दोहरे दृश्यों को मैं कुछ नहीं समझ पा रहा हूँ।
मेरी पीड़ा तो असहय है,
पर उसके लिये मैं,
सबकुछ भूले जा रहा हूँ।
—– मनहरण मनहरण