क्यों….जी चाहता है ?
क्यों खुली किताब की तरह हर ज़ख्म दिखाने को जी चाहता है?
क्यों तूझे अपना बनाकर दुनियां भुलाने को जी चाहता है?
क्यों तूझे पास बिठाकर अपना हर दर्द बताने को जी चाहता है?
क्यों तूझे हीं सीने से लगाकर अब तो रोने को जी चाहता है ?
क्यों खुली किताब की तरह हर ज़ख्म दिखाने को जी चाहता है?
क्यों तूझे अपना बनाकर दुनियां भुलाने को जी चाहता है?
क्यों तूझे पास बिठाकर अपना हर दर्द बताने को जी चाहता है?
क्यों तूझे हीं सीने से लगाकर अब तो रोने को जी चाहता है ?