क्यों और कैसे पितृसत्तात्मक समाज ?( महिला दिवस पर विशेष)
जब जन्म से लेकर मृत्यु तक ,
नारी ही करती पुरुष का पालन पोषण।
तो क्यों कैसे सहती नारी !
तू पुरुष सत्तात्मक समाज का शोषण।
नारी ! तू ही उसे जन्म भी दे ,
और नारी रूप में धरती उसका सहे भार ।
तो पुरुष को पहले माता रूप में,
फिर धरती माता का मानना चाहिए आभार।
प्रकृति और नदियां भी माता स्वरूप हैं,
एक अन्न ,फल ,फूल और सब्जियां प्रदान करे।
और श्वास लेने हेतु शुद्ध हवा भी दे ।
और दूसरी शुद्ध और निर्मल जल से तृप्त करे।
माता स्वरूपनी तो गौ माता भी है ,
जो अपने स्वास्थ्यवर्धक दूध से पोषण करे।
और एक माता जगजननी जो ,
सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करे।
तो जरा सोचो ! तुम पर निर्भर होकर भी ,
यह अहंकारी पुरुष तुम पर क्यों अधिकार जमाए ।
तुम हो शक्ति स्वरूपा और सर्व गुण संपन्न,
आदर्श मानवी तो क्यों न यह स्वीकार करवाए।
आदि शक्ति है तू ,
समस्त चराचर जगत में तेरा वास है।
माता ,पत्नी ,भगिनी ,और पुत्री ,
हर रूप में पुरुष जीवन में तेरा निवास है।
काश ! इस समाज में वास्तव में,
नारी और पुरुष का पलड़ा समान होता।
पितृसत्तात्मक के साथ साथ ,
यहां मातृ सत्तात्मक का चलन होता ।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा ,
अब भी हालात बदले जा सकते हैं।
तू सिर्फ अपनी शक्ति पहचान ले ,
अगाध प्रयासों से समाज तो क्या ,
युग भी बदले जा सकते हैं।