क्यों उलझे उस बात में
क्यों उलझे उस बात में,
जो नहीं है अपने हाथ में।
कल की चिंता छोड़ के हम,
जी लें अब कुछ साथ में।
क्यों उलझे उस बात में।
किसे पता क्या कल होना है,
क्या पाना है क्या खोना है।
आंखे मूंद के अब हम बैठे,
सोंच क्या होगा क्यों रोना है।
दिन में थोड़ी मस्ती कर लें,
और कर लें थोड़ी रात में।
क्यों उलझे उस बात में,
जो नहीं है अपने हाथ में।
आज दिवस है बहुत निराला,
कल फिर नहीं ये मिलने वाला।
जी भर इसमें जी लें हम,
लगा के अपने डर पर ताला।
जो भी हो फिर तब देखेंगे,
आने वाले हालात में।
क्यों उलझे उस बात में,
जो नहीं है अपने हाथ में।
बड़े बड़े वो काम बनाता,
जो न सोंचो वो मिल जाता।
क्या है अपने भाग्य में,
ये तो जाने वही विधाता।
सौंप दिया है सब चिंता,
उस डमरू वाले के हाथ में।
फिर क्यों उलझे उस बात में,
जो नहीं है अपने हाथ में।