* क्यों इस कदर बदल गया सब कुछ*
” इंसानों की भीड़ में
इंसानियत का चलन चला गया
बस अपने आप में मसरूफ है हर शख्स
एक दूसरे से मिलने का चलन चला गया
हाले ऐ दिल क्या बताएँ किसी को
समझने का चलन चला गया
पहले लोग रिश्तों की कदर करते थे
एक दूसरे को खोने से डरा करते थे
पर आजकल का मौहल कुछ ऐसा कि
जब तक मतलब तब तक ही साथ किसी के रहते हैं
बेमतलब साथ चलने का चलन चला गया
मन हो चाहे कितना कड़वा
पर मुँह से मीठा बोला करते हैं
सच्चाई और साफ दिल का चलन चला गया
दे कोई किसी को मोहब्बत तो
उसे ढोंगी बोला जाता है
रिश्ते कोई दिल से निभाएं तो
उसे फरेबी का दर्जा दिया जाता है
आजकल प्यार का चलन चला गया
खुश होते हैं एक दूसरे को बर्बाद करके लोग
आजकल आबाद करने का चलन चला गया
क्यों बदल गया इस कदर जमाना
दो चेहरों के लिबास में ढके चेहरे
सादगी का चलन चला गया”