क्यों आरजू है चाँद से
दुनियां में ऎसे लोग बहुत मिल ही जायेंगे ।
सीखा था जिनने हमसे वो हमको सिखाएंगे ।।
क्यों आरजू है चाँद से अब आरजू न कर ।
जुगनू बने है तारे जो रस्ता दिखाएंगे ।।
जब तेरी वफ़ा तुझसे ही तो रूठ जायेगी ।
इल्ज़ाम उनके सारे तेरे सर पे आएंगे ।।
दस्तूरों के चलन में है अब दोस्ती फँसी
बस खेल खेल में ही वादे टूट जायेंगे ।।
क्यों फर्क बताये भला कोई झूठ साँच में ।
वो पेड़ आम का है वो इमली बताएंगे ।।
जज्बातों की जमी पे हमने बो दिए बबूल ।
कोई लाख चाहे फूल तो कांटे ही पाएंगे ।।
सुनील सोनी “सागर”