“क्यों आए हैं जीवन में ,क्या इसका कोई मूल है ।
“क्यों आए हैं जीवन में ,क्या इसका कोई मूल है ।
सब्र ,प्रेम अब रहा नहीं,नफरत की उड़ती धूल है।
मर्यादा का भान नहीं, लालच में करते भूल हैं।
स्वार्थ का पलड़ा भारी है,बस बातों में ही कूल है।”
“हक़ीक़त “💜💕😊