इल्जाम
है गलत इल्जाम हमपे दिलफेक आशिक़ी का,
मोहब्बत बाँटना तो फलसफा है जिन्दगी का ।
किसी नाज़नी को हमने जी भर क्या देख लिया,
लग गया हमपे तोहमत, सरे आम आवारगी का।
क्यों करता नहीं कोई सवाल इन हुस्नवालों से,
लगा रखा है बाजार जिन्होंने, मौसम ए दिल्लगी का।
संगमरमर-सा बदन और ये बलखाती कोमल काया,
हाय! क्या कहना तराशनेवाले की कारीगरी का ।
बंद करवा दो शहर के सारे मयखानों को,
उनकी आँखों से लेंगे हम, मजा मयकशी का।।
© अभिषेक पाण्डेय अभि