क्योँ डरना
जब एक बार ही मरना है,
तो रोज़-रोज़ क्यों डरना है?
जीवन के बेरोक सफ़र में,
विपदाएं आती जाती हैं।
जलधारा में चलती नौका,
लहरें भी टकराती हैं।
भँवरें उठती हैं दरिया में,
भँवर से बचकर चलना है?
पथ पथरीला बड़ा कँटीला
पर पर्वत पर चढ़ना है।
शीतलहर और तूफ़ाँ से भी,
हमको बचकर रहना है।।
चाहे जितने तूफ़ाँ आएँ,
कदम न पीछे रखना है।
लक्ष्य भेदन का ज़ज़्वा रखो,
नियमितता जीवन में रक्खो ।
बाधाओं से लड़ना सीखो,
मोर्चे पर चढ़ जाना सीखो।।
बुलंद हौसले और ज़ीवट से,
फतह हमें ही करना है।
वीर भोग्या वसुंधरा यह,
ज्ञानवान , कर्मशील बनो।
तन,मन,धन जनहित में अर्पित,
साहसी और धर्मशील बनो।।
अनमोल मिला मानव जीवन,
बाधाओं से क्यों डरना है।
ज़ितनी साँस विधाता ने दीं,
कोई नहीं कम कर सकता।
हानि,लाभ सब विधि हाथ है,
कोई नहीं कुछ कर सकता।।
कर्मठता से भाग्य बदलता,
फिर क्यों दुनिया से डरना है?
मौत आखिरी सच ज़ीवन का,
यह घड़ी कभी न टलती है ।
चाहे जितनी दवा, दुआ हो,
वह अपनी गति से बढ़ती है।।
समय सुनिश्चित है जब उसका,
हर पल क्यों सिसकी भरना है ?
हम अंशी हैं परमपिता के,
अंश में अंशी मिलता है।
जीवन का नहीं भेद है मालुम,
मौत से इसलिए डरता है।।
तारनहारे का हो साया,
मौत से फिर क्या डरना है।।