क्यू ना वो खुदकी सुने?
क्यू ना वो खुदकी सुने?
सुबह से शाम तक ,
घर का सारा काम सुलझाकर,
क्यू ना वो अपने रास्ते चले?
बच्चों के सारे काम निपटाकर,
सब काम होने के बाद भी मुस्कुराकर,
वो क्यू जिए अपने आसू छुपाकर ?
खुद भले ही ना सजे फिर भी चलना है उसको घर सजाकर,
वक्त चाहिए ये मांग कुछ ज्यादा होगाई ऐसा समझकर,
वो तूट रही थी दिन हर दिल को फुसलाकर,
जिंदगी में बहुत कुछ करने की ठान ली थी अपने आप को बनाकर,
बस सारे सपने रह गए, घर को और घरवालो को संभालकर,
खुदके सपनो को चूर देखा,सबके पास एक मदत की नजर से देखकर,
ना प्यार मिला ना उम्मीद जगी, सबको रोज सुबह जगाकर।
पता नही अपने आप को क्या जवाब देगी आइना सामने देखकर,
क्यू सारे शौक छूटे, क्यू अपने मां बाबा से किसके अनुमति से मिले?
दिल में दर्द , आंखो में अपने आप की चमक को दबाकर,
वो बस उमर गुजार रही है, कभी न कभी कुछ अच्छा होगा समझकर,
जिंदगी का सफर में अपने आपको बहुत सा अकेली पाकर,
एक गृहिणी चल रही है मुस्कुराकर।