क्यू तुमने मुँह फेर लिया
सर्द रात
जब तुम
असहाय पीड़ा में थी
मेरी किलकारी
ने
तुम्हारे सारे दर्द को
भुला दिया था
और तुम मुस्कुराते
हुए बोली थी
तुम मेरा
अक्स हो
और मैं झिलमिलाती हुई
बढ़ रही थी
फिर
उस रात जब
तुम्हारा अक्स
दुबारा आया
तो तुमने भी मुँह फेर लिया
और कह ही दिया
मेरा कलंक आया आज जमी पर
माँ फिर तुम भी बदलने लगी
कारन कौन था माँ
मैं या
घर समाज का वो ताना
जिसने तुमसे
तुम्हारी ही ममता को
कलंक कहला डाला
माँ मैं आज भी वही हूँ
तुम्हारा अक्स
फिर तुम क्यू आज बन
गई माँ से एक सोच का अक्स?