क्यूॅं कर रंजीदा रहे दिल तुम से
क्यूॅं कर रंजीदा रहे दिल तुम से
तुम्हीं से दिल ने धड़कना सीखा है
हर आहट पे पलट कर तुम्हीं को देखे
फिर तेरे नाम से ही ये पागल खाबिदा है
अब्र जब झूम कर बरसे वो तेरे रंग की होती है
खुली छतरी में भी तेरे रंग में खुद को रंगते देखा है
~ सिद्धार्थ