क्यूं दिखती खुशी में कमी-सी है ? क्यूं आँखों में भी थोड़ी नमी-सी है ?
” गजल ”
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क्यूं दिखती खुशी में कमी-सी है ?
क्यूं आँखों में भी थोड़ी नमी-सी है ?
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हँस लेते हैं अश्क पीकर, पर ये
जिंदगी तो लगती अनमनी-सी है।
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दिल की बात दिल में दबी रहती
अपनों में तो गहमागहमी -सी है।
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सीख लिया अब काँटों पर चलना
देखो फूलों पर तो गर्द जमी-सी है।
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कोशिश रहता गमे दिल न बने पर
टटोलते नब्ज तो लगता थमी-सी है।
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जीते हैं हम सभी,हँसते हैं हम सभी
पर अश्क भी आँखों में घुटी-सी है।
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जुबां को भी रोक देता है दिल,क्यूं
दिल इतनी सहमी-सहमी -सी है ?
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सवाल होता कभी खुद से तो कभी
खुदा से,कयूं ये जमीं हिल रही-सी है ।
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मिल जाए जवाब तो बताना “पूनम”
को भी क्यूं हर जगह सनसनी-सी है।
#पूनम_झा । कोटा, राजस्थान। 16-11-16
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