— क्यूं जियें फिर —
कभी कभी सोचता हूँ
यह जिन्दगी भी क्या चीज है
सारा उम्र थका देती है
यह बड़ी बेदर्द चीज है !!
कभी कभी लगता है
जैसे की काँधे पर जा रहा हूँ
चारों लोगों से अपनी बातों
से फिर उन्हें बहला रहा हूँ !!
फिर सुबह को जब आँख खुली
तो खुद को जमीन पर पा रहा हूँ
लगता है अभी मैं थका नही हूँ
फिर से सपनो में खोने जा रहा हूँ !!
कब थकूंगा इस जीवन से
यह सोच सोच परेशां हूँ
कोई वजूद नही जीवन का
फिर क्यूं जिए जा रहा हूँ !!
क्यूं लाया जग में मुझे लाने वाला
खुद को गवाया , और मुझ को
गवाने को छोड़ दिया यहाँ
यह सोच में डूबे जा रहा हूँ !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ