क्यूं गुजरी है राते जग-जग कर..
क्यूं गुजरी है राते जग-जग कर,
सवाल ये नही…
सवाल तो बस इतना है की,
इन जागी रातों का मकसद क्या है।
जवाब ढूंढने निकल पड़ा मैं ,
खुद की भीतर की दुनिया में।
पाया सब वीरान पड़ा है,
बस जरूरतों की अंबार है।
वो जागा इसलिए रातों में,
क्यूं की उसे अपनो के सपनो से प्यार है।
सपना वो जो रोज सुबह इस चकाचौंध में,
धुंधली सी हो जाती है।
सपना वो जो बच्चो की आंखों में ,
शाम ढलते ही घर बनाती है।
फिर भी सवाल ये नही की
क्यूं गुजारी है राते जग जग कर
सवाल ये है उन जागी रातो का मकसद क्या है!
– मिथिलेश कुमार सिंह