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11 May 2024 · 1 min read

क्यूँ है..

कल्पनाओं की मरीचिका में,
आखिर भटकना क्यूँ है,
किसी संशय और दुविधा में,
नाहक ही फँसना क्यूँ है…

स्वीकार क्यूँ नहीं करते,
जो यथार्थ कहा करता है,
हर दिन ही स्वयं से,
मुठभेड़ में उलझना क्यूँ है…

जिन आवर्ती कर्णरागों से,
बजते हैं कान प्रतिदिन,
ऐसे दरबारी राग को,
फिर भला सुनना क्यूँ है…

राह अनजान बहुत है,
चौराहे कदम कदम पर,
भटकना तय ही हो जिनमे,
ऐसी राहों से गुजरना क्यूँ है…

©विवेक’वारिद’ *

Language: Hindi
18 Views
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