क्यूँ रंग बिखरा देख दिल सफाई देता है…
धुंआ धुंआ सा ये शहर दिखाई देता है…..
हरेक शख्स ही जिस्म की दुहाई देता है……
हरेक बात में चर्चा था मेरे इश्क़ का यहाँ….
क्यूँ आज गुमसुम मौसम दिखाई देता है….
उड़ा फिरा किया हरदम जो वक़्त से आगे….
वही ज़मीं पे अब फिसलता दिखाई देता है….
उसने मांगी थी दो वक़्त की रोटी लेकिन….
शहर का शहर ये भूखा दिखाई देता है….
गर न तेरा लहू है न मेरा ‘चन्दर’….
क्यूँ रंग बिखरा देख दिल सफाई देता है…