–क्यूँ मक्खन लगाते हो ?–
अपनी मखमली बातों से
क्यूँ किसी को बहकाते हो
माखन जैसी बातो से
क्यूँ तुम फिसलाते हो
यूं तो आदत सी होती है
कुछ चलते फिरते लोगों की
मक्कन जैसी आदतों से
अपने जाल में फसाते हैं
अपने मतलब के लिए
रह रह कर वो जाल फैलाते हैं
कहीं न कहीं तो फसेंगी मछली
नित नए पैंतरे अपनाते हैं
मुंह पर प्यार और बाद में छुरी
ऐसा ही यह खेल रचाते हैं
कर लेते हैं मनसा पूरी अपनी
दूसरों के घर में आग लगाते हैं
अजीत कुमार तलवार
मेरठ