क्यों न खिलखिलाएँ आप….
क्यों न खिलखिलाएँ आप,
आपकी किस्मत बुलंद है ।
अपने यहाँ तो आजकल,
खुशियों का आना बंद है ।
आपके हर भाव से,
टपकता है रस श्रंगार का ।
अपने तो दिल से निकलता,
गम में डूबा छंद है ।
आपकी दुनिया को रोशन,
करते सूरज-चाँद-सितारे ।
यहाँ टिमटिमाता एक दीया है,
जिसकी रोशनी भी मंद है ।
आप जमीं पर क्यों रुकें,
जब पंख मिले हैं चाहतों को ।
अपनी तो हर एक तमन्ना,
दिल में नजरबंद है ।
बेखबर हर गम से उनकी,
बेफिक्र चलती जिंदगानी ।
अपने तो दिल में पनपता,
हर पल नया एक द्वन्द्व है ।
हम से मूरख को मिलें,
यहाँ कदम-कदम पर ठोकरें।
चालें चल जो चल निकले,
समझो वही हुनरमंद है।
अनंत है सीमा दुखों की,
गम का कोई अंत नहीं ।
छिनता रहा हमसे वही,
जिसे दिल ने कहा-पसंद है ।
सुमन जो खिलता डाल पर,
झर जाता एक दिन वही ।
जान लो के हर शै यहाँ,
वक्त की पाबंद है ।
© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
‘मनके मेरे मन के’ से