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4 Apr 2023 · 1 min read

क्यूँ ख़्वाबो में मिलने की तमन्ना रखते हो

क्यूँ ख़्वाबो में मिलने की तमन्ना रखते हो
नींदे परेशां है क्यूँ यूँही आँखों में बसते हो

मैं तो एक टुटे हुँए खिलौनो सा बिखरा हूँ
मेरे तारो कि तरह तुम क्यूँ गर्दिश में रहते हो

तेरे ही सलामती की चाहत में है ये दूरियां..
ये फ़ासले ही सही नजदीकियां क्यूँ बढ़ाते हो

ये डगमगाये से कदम अब तो कही संभले है
जरासा सँवरने दो मुझे आप क्यूँ सँवारते हो..

यार देर सवेर ये घना कोहरा छट ही जाएगा
मेरे आँगन में आनेवाली धुप को क्यूँ रोकते हो

✍️ ‘अशांत’ शेखर
04/04/2023

2 Likes · 2 Comments · 303 Views
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