क्युँ हुई ये सांझ!
आज फिर क्युँ हुई है, ये शाम बोझिल सी दुखदाई?
शांत सी बहती वो नदी, सुनसान सा वो किनारा,
कहती है ये आ के मिल, किनारों ने है तुझको पुकारा,
बहती सी ये पवन, जैसे छूती हो आँचल तुम्हारा,
न जाने किस तरफ है, इस सांझ का ईशारा?
ईशारों से पुकारती ये शाम, है बोझिल बड़ी दुखदाई?
चुप सी है क्युँ, कलरव सी करती वो पंछियाँ,
सांझ ढले डाल पर, जो नित करती थी अठखेलियाँ,
निष्प्राण सी किधर, उड़ रही वो तितलियाँ,
निस्तेज क्युँ हुई है, इस सांझ की वो शोखियाँ?
चुपचुप गुमसुम सी ये शाम, है बोझिल बड़ी दुखदाई?
हैं ये क्षण मिलन के, पर विरहा ये कैसी आई,
सिमटे हैं यादों में वो ही, फैली है दूर तक तन्हाई,
निःशब्द सी खामोशी हर तरफ है कैसी छाई,
निष्काम सी क्युँ हुई है, इस सांझ की ये रानाई?
खामोशियों में ढली ये शाम, है बोझिल बड़ी दुखदाई?