— क्या ख़ुशी क्या गम –
बड़ी गफलत में है इंसान
शायद कहीं सकूंन मिल जाए
जबकि पता है इस जग में
न ख़ुशी न ही गम बिकता है
फिर भी मारा मारा फिरता है
शायद कहीं मरहम बिकता है
हर कोई यहाँ बंधा हुआ है
अपनी अपनी खावईशों के साथ
रोज नई उम्मीद पैदा करता है
शायद उस उम्मीद पर ही जिन्दा है
क्यूंकि इंसान भी इस जग में
इक भटकता हुआ परिंदा है
चाहता है शायद मिल जाए आराम
पर कहाँ मिलता है यहाँ आराम
अपने तरफ देखने की फुर्सत ही कहाँ है
परिवार का बंधन जो लगा है उस के साथ
यह सफ़र है बड़ा कठिन सा
यहाँ न दिन में, न ही रात में है आराम
बस कुछ लम्हे चुराने ही पड़ते हैं
इस जग में दोस्त भी बनाने ही पड़ते हैं
थोड़े से इस वक्त में अपने बनाने ही पड़ते हैं
जो दिल पर कर देते हैं कुछ एहसान
परिंदा जो हूँ “अजीत” यहाँ बहुत
सारे गम दिल में दबाने ही पड़ते हैं
तभी तो दिल कह देता है., दोस्त
यहाँ क्या है ख़ुशी और क्या है गम
अजीत कुमार तलवार
मेरठ