क्या हो तुम?
अनदेखा सा ख्वाब हो तुम..
जो अब तक पूरी न हो सकी वो आस हो तुम…
धुधली सी एक तस्वीर झलकती है इन आखो में.
कानों तक न पहुची, धड़कन को सुनायी दी, वो आवाज हो तुम..
नही जुदा हूं, मैं तुमसे
आत्मा मैं, मेरा साज हो तुम..
जिसकी बनावट को सराहते है लोग
उस सूरत के रचनाकार हो तुम…. $